हरियाणा संस्कृत विद्यापीठ

केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जनकपुरी नई दिल्ली से सम्बद्ध








हरियाणा संस्कृत विद्यापीठ, बघोला


संस्कृत भाषा प्राचीन एवं समृद्ध भारतीय संस्कृति तथा इसके उज्ज्वल अतीत की जननी है। हमारे माननीय एवं परम श्रद्धेय स्वतंत्रता सेनानी एवं संस्कृत विद्वान पं. मदनमोहन मालवीय के हृदय में एक स्वप्न था " ग्राम ग्राम पाठशाला, ग्रहे ग्रहे यज्ञशाला "। अपने इस पवित्र स्वप्न को पूरा करने के लिए भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त स्वर्गीय पं. ननुवा राम भगत जी ने मंदिर गांव में संस्कृत पाठशाला स्थापित करने का निर्णय लिया। इस परियोजना को मूर्त रूप देने के लिए प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान एवं अद्वितीय विद्वान डॉ. हुकुम चंद शास्त्री जी आगे आए और भगत जी के साथ मिलकर 1955 में इसकी स्थापना की। डॉ. शास्त्री इसके संस्थापक प्राचार्य थे तथा वे एक अनुशासित प्रशासक थे।

इन दोनों महानुभावों के संयुक्त प्रयास तथा बघौला गांव के सभी निवासियों के सहयोग से 14 एकड़ भूमि आवंटित की गई। फिर 12 कक्षा-कक्ष, कार्यालय, 25 छात्रावास हॉल, प्रधानाध्यापक निवास, दो मंजिला सभागार तथा पुस्तकालय के लिए एक बहुत बड़ा हॉल बनाया गया। पुस्तकालय में 10000 पुस्तकें हैं। 1962 में हमारी मूल संस्था विद्याप्रचारिणी सभा- बघौला ने इसका अधिग्रहण कर लिया।

1978 में, भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने आदर्श महाविद्यालय योजना के तहत हमारे संस्थान को पहला आदर्श महाविद्यालय घोषित किया। हमारे विद्यापीठ को केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जनकपुरी नई दिल्ली और हमारे मूल निकाय विद्या प्रचारिणी सभा बघौला के माध्यम से शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वित्तीय रूप से जोड़ा गया है। इसके कर्मचारियों को ग्रेड वेतन, भत्ते और अन्य सुविधाएँ यूजीसी विनियमों के अनुसार प्रदान की जाती हैं।

एनएच 2 (दिल्ली-मथरा रोड) पर स्थित हरे-भरे, धूप भरे और विस्तृत परिसर के कारण यह प्रकृति की गोद में बसा "शांति निकेतन" जैसा लगता है। हमारे संस्थान ने हमेशा मौखिक और लिखित दोनों रूपों में संस्कृत को बढ़ावा दिया है। हम हमेशा अपने छात्रों में राष्ट्रीय और देशभक्ति की भावनाओं को प्रोत्साहित करते हैं।

इसका उद्देश्य, संस्कृत शिक्षा प्रदान करने और इसमें सुधार करने के लिए इसे एएसएम के रूप में शुरू करना और पारंपरिक संस्कृत क्षेत्र में उच्च संस्कृत शिक्षा की गति को तेज करना है।

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